- केनज का रोजगार सिद्धांत
KEYNESIAN THEORY OF EMPLOYMENT IN HINDI - शशि अग्रवाल इकोनॉमिक्स तथा लॉ क्लासेस
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- केनज का रोजगार सिद्धांत
- केनज का रोजगार सिद्धांत 1936 में के अर्थशास्त्र में रोजगार ब्याज तथा
मुद्रा के सामान्य सिद्धांत के रूप में एक योगदान दियाI THE
THEORY OF EMPLOYMENT,INTEREST AND
MONEY IN 1936)
- एक पूंजीवादी विकसित अर्थव्यवस्था
में पूर्ण रोजगार की स्थिति सामान्य स्थिति नहीं है। अर्थव्यवस्था में
बेरोजगारी पाई जाती हैI उनके विचार 1930 की महामंदी के
अनुभव के ऊपर आधारित थे Iजब बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर थी बेरोजगारी का
मुख्य कारण उसकी पूर्ति तुलना में कुल मांग में होने
वाली होने वाली कमी थी I
- अमरीका
फ्रांस आदि ने बेरोजगारी को खत्म करने के लिए परंपरावादी अर्थशास्त्री द्वारा दिए गए उपाय को लागू किया परंतु बेरोजगारी खत्म नहीं हुईI
- बेरोजगारी
किस प्रभावपूर्ण मांग में होने वाली कमी से होती है। प्रभावपूर्ण मांग कुल
मांग का वह सतर है जिसके वह है कुल पूर्ति के बराबर होती हैI प्रभावपूर्ण मांग को बढ़ाकर बेरोजगारी को दूर किया जा सकता है।
- कुल मांग
में उपभोग वस्तुओं की मांग तथा पूंजीगत
वस्तुओं की मांग।
- अल्पकाल
में उपभोग वस्तुओं की मांग CONSTANT रहता हैi
- प्रभावपूर्ण
मांग को बढ़ाने के लिए निवेश के अंदर वृद्धि करनी पड़ती है iमंदी की दिनों में लाभ कमाने की
संभावना कम हो जाती हैi सरकार को निवेश करना पड़ता हैi
- केनज का रोजगार सिद्धांत
मान्यताएं
- SHORT PERIOD (अल्पकाल) : विकसित देशों में बेरोजगारी की समस्या एक अल्पकालीन समस्या हैi
·
PERFECT COMPETITION (पूर्ण प्रतियोगिता )
·
CLOSED ECONOMY
(बंद अर्थव्यवस्था) : रोजगार तथा आय स्तर पर विदेशी व्यापार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता I
·
सरकारी आय तथा व्यय की अपेक्षा ( IGNORES THE ROLE OF GOVERNMENT AS A
SPENDER OR A TAXER):
कुल मांग पर
सरकारी क्षेत्र के पड़ने वाले प्रभाव की अवहेलना की हैI
- घटती
की सीमांत उत्पादकता ( LAW OF DIMINISHING MARGINAL
PRODUCTIVITY): जैसे-जैसे को श्रम की अधिक इकाइयों को को रोजगार दिया जाता है उनकी
सीमांत उत्पादकता कम हो जाती हैi
- श्रम ही केवल श्रम ही उत्पादन का घटता बढ़ता साधन है
- ( LABOUR IS THE ONLLY VARIABLE FACTOR OF
PRODUCTION)
- श्रमिकों
को मुद्रा भ्रांति है गलतफहमी है ( LABOUR HAS MONEY ILLUSION): मुद्रा की कीमत बदलती नहीं है समान रहती है होने वाले परिवर्तन करते
हैंI कीमत होने वाले परिवर्तन होने वाले प्रभाव की अवहेलना करते हैं
- मुद्रा के
द्वारा मूल्य का सचय भी किया जाता है
: MONEY ACTS AS A STORE OF VALUE : मुद्रा केवल जिन्हें का कारण मुद्रा के
विनमय में केवल मुद्रा माध्यम का कार्य नहीं करती इसके द्वारा मुद्रा के
द्वारा मूल्य का सचय भी किया जाता हैi
- आय में जिस
अवधि में वृद्धि होती है उसी अवधि में उपभोग तथा निवेश में परिवर्तन होता है i
- संतुलन की स्थिति अपूर्ण रोजगार की अवस्था में भी संभव हैi
- बचत आय पर निर्भर करते हैं निवेश ब्याज की दर पर निर्भर करता है : S=f(Y)
,I=f(i)
- ब्याज मौद्रिक तत्वों पर निर्भर करता है, इसका मतलब है मुद्रा की मांग तथा पूर्ति पर निर्भर
करता है
- EXPLANATION
- KEYNESIAN
THEORY OF INCOME OR EMPLOYMENT EXPLANATION
- KEYNESIAN
THEORY OF INCOME OR EMPLOYMENT
- EXPLANATION
- पूंजीवाद
अर्थव्यवस्था में काल में कुल उत्पादन अथवा राष्ट्रीय आय रोजगार के स्तर पर
निर्भर करती है क्योंकि उत्पादन के साधन जैसे पूंजी तकनीक आदि CONSTANT रहते हैंi
- प्रभावपूर्ण
मांग कुल मांग का वह सतर है जिसके वह है कुल पूर्ति के बराबर होती हैI प्रभावपूर्ण मांग को बढ़ाकर बेरोजगारी को दूर किया जा सकता है।
- Y = f(N)
- राष्ट्रीय आय रोजगार के स्तर पर निर्भर करती हैi
- N=f( ED)
- रोजगार के
स्तर प्रभावपूर्ण मांग पर निर्भर करती हैi
- ED------AD=AS
- प्रभावपूर्ण
मांग कुल मांग का वह सतर है जिसके वह है कुल पूर्ति के बराबर होती हैI
- कुल पूर्ति ( AGGREGATE SUPPLY) :
- कुल पूर्ति कीमत तथा कुल कुल पूर्ति तालुका के अंतर को समझना जरूरी है कुल
पूर्ति कीमत का मतलब कुल रकम से है जो सभी उत्पादकों को रोजगार की एक निश्चित
स्तर पर उत्पादित किए गए उत्पादन की मात्रा को बेचने से प्राप्त होती हैI पूर्ण प्रतियोगिता में कुल उत्पादन की कुल लागत के बराबर होती है I राष्ट्रीय आय भी
कहा जा सकता हैI
- इसके उल्ट कुल पूर्ति कीमत तालिका या कुल पूर्ति से मतलब उस तालिका से
हैं जो रोजगार की अलग-अलग स्तर पर मिलने वाली कुल पूर्ति कीमत को दर्शाती है अल्पकाल में कुल पूर्ति होती
CONSTANTरहती है I
- कुल मांग ( AGGREGATE DEMAND) : कुल मांग कीमत तथा कुल मांग तालिका के अंतर को समझना जरूरी हैI कुल मात्रा को बेचने से प्राप्त होने की संभावना होती है I
- कुल मांग
कीमत से मतलब उस कुल रकम से है जो सभी उत्पादकों को रोजगार
की एक निश्चित स्तर पर उत्पादित किए गए उत्पादन की मात्रा को बेचने के
प्राप्त होने की संभावना होती हैi
- कुल मांग तालिका यह मतलब उस
तालिका से जो है जो रोजगार के विभिन्न स्तरों पर मिलने वाली कुल मांग कीमत को
बताते हैंi
- कुल मांग ( AGGREGATE DEMAND) :
कुल मांग दो क्षेत्रों में बांटा जा सकता है I
- उपभोग तथा
निवेश।
- उपभोग व्यय ( CONSUMPTION EXPENDITURE) उपभोग व्यय वस्तुओं पर जो खर्चा किया जाता है उसे अब वह
उपभोग व्यय यह कहा जाता है I कुल मांग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है उपभोग
व्यय में वृद्धि होने से कुल आय में वृद्धि होती है Iयह दो चीजों पर निर्भर करता है :
- उपभोग प्रवृत्ति
- तथा राष्ट्रीय आय
- उपभोग प्रवृत्ति : उपभोग व्यय प्रवृत्ति आयके विभिन्न स्तरों पर किए जाने वाले खर्चों को बताती है
यह दो प्रकार की होती है,
- उपभोग औसत प्रवृत्ति : C/Y उपभोग व्यय तथा आय का
अनुपात हैi ( AVERAGE
PROPENSITY TO CONSUME)I
- MARGINAL
PROPENSITY TO CONSUME :∆C/∆Y
उपभोग व्यय होने वाली परिवर्तन का तथा आय होने वाली परिवर्तन का अनुपात
है I
- तथा राष्ट्रीय आय: उपभोग आय का फलन हैi c= f(y)
- तथा राष्ट्रीय आय: उपभोग आय का फलन हैi c= f(y)
- आय में
वृद्धि होने से उपभोग में वृद्धि होती है iपरंतु उपभोग में होने वाली वृद्धि आय में होने वाली वृद्धि के उत्पात से कम होती है I
- कुल मांग
कुल पूर्ति की तुलना में कम हो जाती है जिसके कारण बेरोजगारी हो जाती है iबेरोजगारी को दूर करने के लिए कुल
मांग में वृद्धि की जानी चाहिएi
- कुल मांग
में वृद्धि करने के लिए निवेश करना पड़ता है क्योंकि अल्पकाल में उपभोग
कांस्टेंट जाता है रहता है
- INVESTMENT
: (निवेश) पूंजीगत वस्तुएं जेके मशीनें जो खर्चा
किया जाता है उसे निवेश कहा जाता हैi
- निवेश का मतलब खर्चों से है जिसके
द्वारा पूंजी में वृद्धि होती है निवेश कुल मांग का एक महत्वपूर्ण भाग है ,निवेश गुणांक के प्रभाव के कारण
कई गुना आय में वृद्धि होती है i
- रोजगार की काफी मात्रा में बढ़ता
है I
- निवेश दो चीजों पर निर्भर करता है ब्याज
की दर तथा पूंजी की सीमांत उत्पादकता
- निवेश दो
चीजों पर निर्भर करता है ब्याज की दर तथा पूंजी की सीमांत उत्पादकता
- ब्याज की
दर :ब्याज की दर मुद्रा की DEMAND ,मुद्रा की पूर्ति पर निर्भर करती
है ब्याज की दर में कमी होने से निवेश करता है तथा ब्याज की दर बढ़ जाने पर
निवेश कम हो जाता हैi
- पूंजी
की सीमांत उत्पादकता :सीमांत उत्पादकता का
मतलब लाभ की दर से है i लाभ पूंजी की एक और इकाई लगाने से जो लाभ वृद्धि भी होती है उसे कहा पूंजी की सीमांत उत्पादकता जाता है
- पूंजी की सीमांत उत्पादकता :सीमांत उत्पादकता का मतलब लाभ की दर से है i लाभ पूंजी की एक और इकाई लगाने से
जो लाभ वृद्धि भी होती है उसे कहा पूंजी की सीमांत उत्पादकता जाता हैi
- यह दो
चीजों पर निर्भर करती हैi
- अनुमानित आय तथा पूर्ति कीमत
- पूर्ति कीमत से मतलब किसी मशीन की
उसकी कीमत जो उसी प्रकार की एक नई मशीन के
लिए देनी पड़ती है I
- जब एक
उत्पादक निवेश करता है तो वह पूंजी की सीमांत उत्पादकता को ब्याज के दर साथ
तुलना करता है अगर पूंजी की सीमांत उत्पादकता ब्याज की दर से ज्यादा है तो वह
निवेश करता है नहीं तो नहीं करता
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